एक चौंकाने वाली हकीकत, कुशीनगर से पढ़िए ध्यान से

क्या सिस्टम है यार… जानकर दंग रह जाएंगे आप 

#एक चौंकाने वाली हकीकत, कुशीनगर से पढ़िए ध्यान से 

डिजिटल इंडिया और कैशलेस व्यवस्था के इस दौर में अगर आपका पैसा आपके ही मोबाइल नंबर से किसी और के खाते में चला जाए, तो इसे क्या कहा जाएगा—सिस्टम की खामी या आम आदमी की लाचारी?
कुशीनगर जनपद के रहने वाले एक मीडिया प्लेटफॉर्म से जुड़े कर्मी के साथ जो हुआ, वह न सिर्फ हैरान करने वाला है बल्कि पूरे डिजिटल भुगतान सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
पीड़ित मीडिया कर्मी के पास मोबाइल नंबर 9918305876 है, जिसे उन्होंने वर्ष 2014 में अपनी आईडी पर वोडाफोन सिम के रूप में खरीदा था। बाद में यह नंबर जियो में पोर्ट करा लिया गया। यह सिम आज भी उन्हीं के पास और उपयोग में है। खास बात यह कि इस नंबर पर कोई भी UPI (गूगल पे/फोन पे) कभी नहीं बनाया गया।
मीडिया कर्मी के पास एक दूसरा सक्रिय नंबर 9453013386 भी है, जिस पर गूगल पे चलता है और नेटवर्क समस्या होने पर वे दोनों नंबरों से बातचीत करते रहते हैं।
मामला तब सामने आया जब एक मित्र ने आवश्यकता पड़ने पर 10,000 रुपये मीडिया कर्मी के मोबाइल नंबर 9918305876 पर गूगल पे/फोन पे के माध्यम से भेज दिए। पैसे भेजने के बाद जब जानकारी दी गई तो मीडिया कर्मी सतर्क हुए, क्योंकि उस नंबर पर तो कोई UPI था ही नहीं।
जांच-पड़ताल में जो सच सामने आया, वह और भी चौंकाने वाला था।
पैसा Sanoj.S – PhonePe ID (9918305876@IBI) के खाते में चला गया। बैंक विवरण में यह खाता भारतीय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, अदरी शाखा (जनपद मऊ) का निकला, जबकि खाताधारक का पता थाना बांसडीह, ग्राम ढ़ोधौली, जनपद बलिया बताया गया।
जानकारी के अनुसार, सनोज सिंह नामक व्यक्ति ने वर्ष 2014 से पहले अपने SBI खाते में यह मोबाइल नंबर लिंक कराया था। बाद में वह नंबर बंद हो गया और टेलीकॉम कंपनी द्वारा वही नंबर दोबारा बाजार में जारी कर दिया गया, जिसे मीडिया कर्मी काशीनाथ साहनी ने अपने आधार कार्ड से वैध रूप से खरीद लिया।
लेकिन सिस्टम की सबसे बड़ी खामी यह रही कि पुराने बैंक खाते से वह नंबर कभी डीलिंक नहीं हुआ। नतीजा यह हुआ कि जानकारी होने या न होने में, तीन बार में कुल 17,300 रुपये उसी पुराने खाते में ट्रांसफर हो गए।
इस पूरे घटनाक्रम से आहत पीड़ित मीडिया कर्मी ने थाना साइबर क्राइम में प्रार्थना पत्र देकर इंस्पेक्टर मनोज कुमार पंत से न्याय की गुहार लगाई है और अपने पैसे वापस दिलाने की मांग की है।
इंस्पेक्टर मनोज कुमार पंत ने भरोसा दिलाया है कि
“इस मामले में संबंधित बैंक से समन्वय कर, जहां पैसा गया है वहां से रिकवरी कराकर पीड़ित के खाते में ट्रांसफर कराया जाएगा।”
यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं है, बल्कि लाखों मोबाइल यूजर्स के लिए चेतावनी है। सवाल साफ है—
बंद हो चुके नंबरों को बैंकों से डीलिंक क्यों नहीं किया जाता?
टेलीकॉम और बैंकिंग सिस्टम के बीच समन्वय की जिम्मेदारी किसकी है?
अगर पैसा गया, तो गलती किसकी मानी जाएगी—यूजर की या सिस्टम की?
जब एक सक्रिय सिम, वैध आधार और बिना UPI के बावजूद पैसा किसी और के खाते में चला जाए, तो भरोसा डगमगाना स्वाभाविक है।
यह मामला प्रशासन, बैंक और टेलीकॉम कंपनियों के लिए आंख खोलने वाला है, ताकि भविष्य में कोई और आम आदमी या पत्रकार इस तरह की डिजिटल ठगी का शिकार न बने।

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