इस देश को रिवॉल्यूशन ही बचा सकता है”

“इस देश को रिवॉल्यूशन ही बचा सकता है” 

गोरखपुर जिला चिकित्सालय से उठा संविधान और सेक्युलरिज़्म बचाने का स्वर,

डॉ. संपूर्णानंद मल्ल ने राष्ट्रपति व मुख्य न्यायाधीश को ज्ञापन भेजकर जताई गहरी चिंता

गोरखपुर।
“इस देश को रिवॉल्यूशन ही बचा सकता है” — पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू के इस कथन को उद्धृत करते हुए पूर्वांचल के सामाजिक चिंतक एवं गांधीवादी विचारक डॉ. संपूर्णानंद मल्ल ने भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सेक्युलरिज़्म और संविधान पर मंडराते खतरे को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है।
डॉ. मल्ल ने बताया कि 27 दिसंबर 2025 की सुबह 5 बजे, जब वे जिला चिकित्सालय गोरखपुर के प्राइवेट वार्ड (कक्ष संख्या-4) में भर्ती थे, उसी दौरान उन्होंने एक विस्तृत ज्ञापन तैयार कर माननीय राष्ट्रपति एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश को प्रेषित किया।
“मुझे हिंदू राष्ट्र नहीं, संविधान और तिरंगा चाहिए”
डॉ. मल्ल का कहना है कि वे किसी भी प्रकार की धार्मिक राष्ट्र-परिकल्पना को संविधान के मूल ढांचे के विरुद्ध मानते हैं।
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा—
“मैं हिंदू राष्ट्र की आवाज़ नहीं सुन सकता। मुझे मेरा भारत, मेरा तिरंगा और मेरा संविधान चाहिए।”
उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान समय में धर्म और जाति आधारित राजनीति लोकतंत्र को कमजोर कर रही है और संसद की भूमिका आम नागरिकों की समस्याओं से कटती जा रही है।
महंगाई, बेरोज़गारी और असमानता पर तीखा हमला
अपने ज्ञापन में डॉ. मल्ल ने देश की आर्थिक स्थिति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि—
80 करोड़ से अधिक लोग सरकारी अनाज पर निर्भर हैं
22 करोड़ से अधिक लोग कुपोषण के शिकार हैं
शिक्षा, स्वास्थ्य, रेल, सड़क और आवश्यक वस्तुओं पर करों का बोझ बढ़ा है
सार्वजनिक संपत्तियों के निजीकरण से आम नागरिक को नुकसान हो रहा है
उन्होंने 2047 के “विकसित भारत” के दावे को जमीनी हकीकत से परे बताया।
संविधान और स्वतंत्रता संग्राम का हवाला
डॉ. मल्ल ने अपने वक्तव्य में कहा कि—
“भारत की आज़ादी किसी मंदिर या मस्जिद से नहीं, बल्कि भगत सिंह, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ान, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस जैसे असंख्य बलिदानियों से मिली है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि गांधी, अंबेडकर, नेहरू और पटेल का भारत बहुधार्मिक, बहुभाषी और समावेशी रहा है।
RSS और हिंदू राष्ट्र की अवधारणा पर आपत्ति
डॉ. मल्ल ने अपने ज्ञापन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की वैचारिक भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि—
संविधान निर्माण के समय RSS ने तिरंगे और संविधान को स्वीकार नहीं किया
सरदार पटेल द्वारा लगाए गए प्रतिबंध का ऐतिहासिक उल्लेख
हिंदू राष्ट्र की मांग को उन्होंने संविधान-विरोधी बताया
स्वास्थ्य बिगड़ने का भी जिक्र
डॉ. मल्ल ने बताया कि 26 दिसंबर को ज्ञापन सौंपने के बाद उनका ब्लड प्रेशर 107/171 तक पहुंच गया, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। वर्तमान में उनकी स्थिति स्थिर बताई जा रही है।
मुख्य न्यायाधीश से हस्तक्षेप की अपील
ज्ञापन की प्रतिलिपि भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश को भेजते हुए डॉ. मल्ल ने आग्रह किया कि—
“यदि भारत का सेक्युलरिज़्म कमजोर पड़ा, तो देश अंदर से टूट जाएगा। संविधान और तिरंगे की रक्षा आज सबसे बड़ा न्यायिक दायित्व है।”
जन-जागरूकता अभियान की घोषणा
डॉ. मल्ल ने देशभर में
संविधान कथा, लोकतंत्र, स्वतंत्रता संग्राम, नागरिक अधिकार, कर्तव्य, महंगाई, बेरोज़गारी और सामाजिक विषमता पर जनसंवाद चलाने की आवश्यकता बताई, ताकि नागरिकों को संवैधानिक मूल्यों से जोड़ा जा सके।
रिपोर्ट : के एन साहनी
स्थान : गोरखपुर

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