विकास की जिम्मेदारी जनप्रतिनिधियों को मिले

 विकास की जिम्मेदारी जनप्रतिनिधियों को मिले

देश और प्रदेश में विकास की योजनाओं पर हर वर्ष अरबों रुपये का बजट खर्च किया जाता है, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि उसका पूरा लाभ आज भी आम जनता, विशेषकर गरीब और वंचित वर्ग तक नहीं पहुंच पा रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि विकास की अधिकांश योजनाएं नौकरशाही के नियंत्रण में हैं, जहां जवाबदेही और जनसरोकार अपेक्षित स्तर तक नहीं दिखते।

यदि वास्तव में विकास को प्रभावी और पारदर्शी बनाना है, तो यह काम सांसदों एवं विधायकों को सौंपा जाना चाहिए और विकास से जुड़ा बजट सीधे इन्हीं निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के माध्यम से जनता तक पहुंचे। सांसद और विधायक जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि होते हैं, जिनकी सीधी जवाबदेही जनता के प्रति होती है। यदि इन्हें स्पष्ट अधिकार और पर्याप्त बजट दिया जाए, तो क्षेत्रवार विकास की तस्वीर कहीं अधिक सशक्त दिखाई दे सकती है।

पांच वर्षों के कार्यकाल में यह साफ देखा जा सकता है कि किस जनप्रतिनिधि ने अपने क्षेत्र में सड़क, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेंशन और रोजगार जैसे मुद्दों पर कितना ठोस और बेमिशाल कार्य किया। जनता के बीच रहकर काम करने वाले प्रतिनिधियों के कार्यों का मूल्यांकन भी सरलता से हो सकेगा और चुनाव के समय जनता सच्चे विकास के आधार पर अपना निर्णय ले पाएगी।

आज जरूरत इस बात की है कि विकास को घोषणाओं और फाइलों से निकालकर गांव, कस्बे और शहर की गलियों तक पहुंचाया जाए। जब विकास की कमान जनप्रतिनिधियों के हाथों में होगी, तभी भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगेगा और जनता को यह अहसास होगा कि लोकतंत्र वास्तव में उनके हित में काम कर रहा है।

 संपादकीय
के. एन. साहनी, कुशीनगर

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने